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राजा राममोहन राय का जीवन परिचय
राजा राममोहन राय का जन्म एवं मृत्यु
जन्म- 1772 - हुगली (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु- 1833 -ब्रिस्टल (इंग्लैंड)
मृत्यु- 1833 -ब्रिस्टल (इंग्लैंड)
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित की गयी प्रमुख संस्थाएँ
हिंदू कॉलेज -1817
वेदांत कॉलेज -1825
ब्रह्म समाज- 1828
सती प्रथा का अंत 1829
राजा राममोहन राय द्वारा प्रारम्भ की गयी प्रमुख पत्रिकाएँ
संवाद कौमुदी (बंगाली)
मिरात ऊंल अखबार (फारसी)
ब्रह्मा
क्रॉनिकल (अंग्रेजी)
(उनको लगभग 10 भाषाओं का ज्ञान था।)
- आधुनिक शिक्षा का समर्थन
- पश्चिमी संस्कृति का समर्थन
- मूर्ति पूजा का विरोध
- जाति प्रथा का विरोध
- बहू देववाद का विरोध
- बहु विवाह का विरोध
राजा राममोहन राय के दार्शनिक विचार➥
- वेदांत
- एकेश्वरवाद
- अराजकतावादी स्वतंत्रता
राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार:-
राजा राममोहन राय परंपरागत शिक्षा प्रणाली के स्थान पर आधुनिक शिक्षा प्रणाली को अधिक महत्व देते थे क्योंकि उनका मानना था कि आधुनिक शिक्षा में तार्किकता व वैज्ञानिकता को बढ़ावा मिलता है,
उन्होंने अंग्रेजी भाषा ,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की सिफारिश की थी।
राजा राममोहन राय के मन मैं पश्चिमी दार्शनिक विचार ,परंपराओं के प्रति प्रेम व समर्थन था ,उन्होंने पश्चिमी संस्कृति से भारतीय समाज के पुनरुत्थान का प्रयास किया ,
उनका मानना था कि पश्चिमी संस्कृति में व्याप्त तार्किकता और विज्ञान वाद की धारणाओं का प्रयोग भारतीय समाज में भी किया जाना चाहिए ताकि विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास व रूडीवादियों से जकडे भारतीय समाज को मुक्ति मिल सके।
राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न कू -प्रथाओं जैसे मूर्ति पूजा, जाति प्रथा, बहुविवाह, बहूदेववाद आदि का खुलकर विरोध किया
उनका मानना था कि व्यक्ति को तर्किक मूल्यों के आधार पर चलना चाहिए ना कि वर्षों से चले आ रही रूढ़िवादिता पर।
राजा राममोहन राय के राष्ट्रीय विचार
राजा राममोहन राय ने अपने राष्ट्रीय एवं सामाजिक विचारों को व्यक्त करते हुए बताया कि भारत के कुल राजस्व का लगभग आधा भाग इंग्लैंड को भेजा जाता है, इस प्रकार उन्होंने धन के बहिर्गमन के सिद्धांत का प्रतिपादन भी किया।
राजा राममोहन राय के प्रयासों से भारत में सती प्रथा जैसी भयानक कुरीति पर रोक लगी व उसे अपराध घोषित किया जा सका।
राजा राममोहन राय के दार्शनिक विचार➥
राजा राममोहन राय के दर्शन पर वेदांत दर्शन का प्रभाव था ,उनके द्वारा वेदांत व उपनिषदों को अपने दर्शन का आधार बनाया गया ,और इसी आधार पर 1828 में वेदांत की शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु "ब्रह्म समाज" की स्थापना की गई
इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों को खत्म करना व एकेश्वरवाद की शिक्षा देना था।
राजा राम मोहन राय एकेश्वरवाद के समर्थक थे वह उनका मानना था कि सभी धर्मों के द्वारा बनाए गए मार्ग उस परम सत्ता इश्वर की प्राप्ति के लिए ही होते हैं क्योंकि परम सत्ता एक ही हैं।
राजा राम मोहन राय मनुष्य को एक विवेकशील प्राणी मानते थे ,अतः मनुष्य की स्वतंत्रता को सर्वाधिक महत्व देते थे ,इनका मानना था कि स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान है ,इस पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध स्वीकार नहीं किया जा सकता ,क्योंकि विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रता है।
राजा राममोहन राय अराजकतावादी स्वतंत्रता के पक्षधर थे अर्थात ऐसी स्वतंत्रता जिसमें राज्य ,समाज आदि किसी का भी किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप ना हो।
राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के द्वारा प्रदान की गई थी
राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि मुगल सम्राट अकबर द्वितीय के द्वारा प्रदान की गई थी
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