भारत में टिड्डी दल (LOCUST SWARM ) के हमले बढ़ते जा रहे हैं ,इस संबंध में विभिन्न समाचार पत्रों में भी खबरें आपने पढ़ी होगी ,यहां पर टिड्डी दल से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी ,इनके खतरे, रोकने के उपाय ,आदि से संबंधित वर्णन बहुत ही आसान भाषा में किया गया है।
टिड्डी दल (LOCUST SWARM ) क्या होते है ??
टिड्डी को हम सभी ने कभी न कभी खेतों में या पेड़ों की पत्तियों पर जरूर देखा है ,लेकिन जब यह बहुत बड़ी संख्या में इकट्ठे हो जाते हैं तब इनको टिड्डी दल की संज्ञा दी जाती है। यह मुख्यतः SHORT HORN GRASSHOPPER होते हैं, जो कि आपको चित्र में दिख रहे होंगे।यह मुख्यतः घास ,पेड़ों की पत्तियां आदि खाते हैं ,इनकी प्रजनन क्षमता बहुत ज्यादा होती है, बहुत ही कम समय में यह किसी क्षेत्र विशेष में फैल जाते हैं। यह टिड्डी दल एक दिन में करीब 150 किलोमीटर की दूरी तक की यात्रा कर सकते हैं। इनके एक झुंड में करीब औसतन 60 मिलियन टिड्डिया होती है ,इनका जीवनकाल 3 से 5 महीने तक का होता है ।
इनके प्रकार ---भारत में टिड्डियों की 4 प्रजातियां पाई जाती है !
- डेजर्ट लोकस्ट
- माइग्रेटरी लोकस्ट
- बॉम्बे लोकस्ट
- ट्री लोकस्ट
इनमें सबसे ज्यादा नुकसानदायक प्रजाति डेजर्ट लोकस्ट की मानी जाती है।
टिड्डी दल क्या-क्या नुकसान पहुंचाते हैं ??
टिड्डी दल सामान्यतः खाद्यान्न से संबंधित बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं क्योंकि यह फसलों को पूरी तरीके से नष्ट कर देते हैं ,यह फसल के पौधे के सभी भागों जैसे फूल ,पत्तियां ,हरे तने यहां तक कि जमीन पर पड़े फसलों के बीजों को भी खा जाते हैं, एक अनुमान के मुताबिक एक टिड्डी दल करीब-करीब एक हमले में इतनी फसल नष्ट कर देता है जितनी फसल से करीब 35000 लोगों की भूख मिटाई जा सकती है.,यह टिड्डी दल बहुत कम समय में पूरी फसल को नष्ट कर देते हैं यह जिन खेतों से होकर के गुजरता है वह खेत चंद मिनटों में फसल विहीन हो जाते हैं। ये इतनी ज्यादा संख्या में होती है कि जिन पौधों पर या छोटे पेड़ों पर बैठती है तो इनके वजन से वह पौधे भी नीचे झुक जाते हैं या नीचे गिर जाते हैं।यह भारत में कहां से आए हैं?
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार इन दलों का विकास मुख्यतः तीन क्षेत्रों में हुआ है, जिनमें से एक क्षेत्र दक्षिणी पश्चिमी एशिया का है ,जिसमें ईरान पाकिस्तान,का क्षेत्र सम्मिलित है वही दूसरा क्षेत्र लाल सागर के आसपास का जिसमें यमन सऊदी अरेबिया ओमान आदि देश सम्मिलित होते हैं ,तथा तीसरा क्षेत्र जिसे Horn of Africa के नाम से भी जाना जाता है, इसमें सोमालिया ,केन्या आदि देशों के क्षेत्र सम्मिलित होते हैं ,यह तीनों क्षेत्र मरुस्थलीय क्षेत्र है।। इन तीनों क्षेत्रों में इस वर्ष चक्रवात के कारण काफी वर्षा हुई है ,जिस कारण से इन क्षेत्रों में पर्याप्त नमी मौजूद थी और यही स्थिति टिड्डियों के प्रजनन के लिए अनुकूल होती चली गई। तथा इस वर्ष भारत में भी अच्छी बारिश हुई है तथा पर्याप्त मात्रा में नमी भी मौजूद है ,साथ ही साथ इन क्षेत्रों से तेज हवाएं भारत की ओर प्रवाहित होने लगी जिससे इन दलों को भारत के मुख्य रूप से पश्चिमी भागों जिसमें ,गुजरात ,राजस्थान मध्यप्रदेश ,तथा पंजाब का क्षेत्र सम्मिलित है वहां तक पहुंचने में इन हवाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।भारत में टिड्डी दलों का हमला इससे पहले 1997में हुआ था ,फिर बीच-बीच में भी कई बार छुट्टियों के हमले की खबरें मिलती रही परंतु इस वर्ष का टिड्डी दल का हमला बहुत ज्यादा नुकसानदायक सिद्ध हो रहा है!
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LOCUST WARNING ORGANISATION
भारत में इनसे होने वाले नुकसान को रोकने के लिए एक संगठन कार्य करता है जिसे टिड्डी चेतावनी संगठन अर्थात लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन कहा जाता है इसका मुख्यालय जोधपुर में स्थित है । यह संगठन भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है। इस संगठन का मुख्य कार्य टिड्डियों के प्रजनन की संख्या पर निगरानी रखना तथा इनके नियंत्रण हेतु चेतावनी तथा विभिन्न कार्यकलापों को लागू करना है।टिड्डी दलों के प्रजनन से संबंधित एक खास बात यह भी है कि जब यह अपना बहुत बड़ा झुंड बना लेते हैं तब यह 2 वर्षों तक सक्रिय रहता है फिर यह लंबे समय के लिए सुसुप्ता अवस्था में चला जाता है।
इन छुट्टियों का खतरा भारत में अभी और भी बढ़ने के आसार दिख रहे हैं क्योंकि भारत में मानसून आने का समय हो चुका है तथा वातावरण में नमी होने से यह ज्यादा मात्रा में प्रजनन करेगी साथ ही साथ पर्याप्त मात्रा में घास उगने से भी इनको अनुकूल वातावरण मिलेगा इसके अलावा जो फसलों के बीज खेतों में बोए जाएंगे उनको भी यह नष्ट करेंगी ,इस प्रकार आने वाले समय में टिड्डी दलों के कारण कृषि पर समस्याएं और बढ़ने वाली है।
टिड्डी दल के हमले को रोकने के उपाय
इनके हमलों को रोकने में कुछ रसायनों का उपयोग विशेष रूप से कारगर साबित होता है उदाहरण के लिए मेलाथियान ,यह एक विषैला रसायन है इसका उपयोग उन्हीं क्षेत्रों में किया जाना चाहिए जहां पर फसली पौधे ना हो।
फसली क्षेत्रों में क्लोरपीरिफॉस नामक रसायन के प्रयोग करने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह रसायन विषैला नहीं होता है इसका उपयोग फसलों पर किया जा सकता है।इसे भी पढ़े ⇒मनरेगा पूरी जानकारी आसान में
इसके अलावा विभिन्न प्रकार के ट्रैप का भी सहारा लिया जाता है जिसमें पानी के अंदर कुछ मात्रा में केरोसिन डालकर इनको उसके अंदर डालने का प्रपंच किया जाता है।
इन रसायनों का प्रयोग उसी समय कारगर साबित होता है जब ये रात्रि के समय किसी स्थान पर विश्राम अवस्था में बैठी हो ,उड़ते हुए टिड्डी दल पर इन रसायनों का प्रयोग कारगर साबित नहीं होता है।
इसके अलावा खेतों पर तेज ध्वनि यंत्रों का प्रयोग करके जैसे ढोल थालियां आदि बजाकर भी इनको उस क्षेत्र से भगाया जा सकता है।
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